साम्यवाद, सामाजिक-राजनितिक दर्शन के अंतर्गत एक ऐसी विचारधारा के रूप में वर्णित है, जिसमें संरचनात्मक स्तर पर एक समतामूलक वर्गविहीन समाज की स्थापना की जाएगी। समाज में अगर साम्यवाद का पालन होगा तब उससे देश भर में काफ़ी विकास और सुधार होगा, जैसे- स्वतंत्रता और समानता के सामाजिक राजनीतिक आदर्श एक दूसरे के पूरक सिद्ध होंगे। न्याय सबके लिए बराबर होगा और मानवता ही सबका धर्म एवं जाती होगी। श्रम की संस्कृति सर्वश्रेष्ठ और तकनीक का स्तर ऊँचा होगा। साम्यवाद का सिद्धांत अराजकता का पोषक है जहाँ राज्य की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। जहाँ समाजवाद में कर्तव्य और अधिकार के वितरण को 'हर एक से अपनी क्षमतानुसार, हर एक को अपने कार्यानुसार' (From each according to his/her ability, to each according to his/her work) के सूत्र से नियमित किया जाता है, वहीँ साम्यवाद में यही सिद्धांत लागू है, यह कार्ल मार्क्स के द्वारा दिया गया नारा था जिसे अंग्रेजी में मार्क्सिस्ट स्लोगन (Marxist Slogan) कहते हैं। अब सवाल यह उठता है कि भारत में साम्यवाद की शुरुवात कैसे हुई -
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी पहली बार एम.एन. रॉय और उनकी अमरीकी पत्नी द्वारा 1925 में यू.एस.एस.आर. (USSR/सोवियत संघ/Soviet Union) में ताशकंद में पंजीकृत हुई थी। जब वे न्यूयॉर्क में निर्वासन थे, वे लाला लाजपत राय के सचिव रह चुके थे। हालाँकि यह सी.पी.आई. (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया) का एक आधारिक पंजीकरण था, लेकिन उसके कुछ साल बाद भारतीय अध्याय कानपुर में पंजीकृत हुआ था। कानपुर एक बड़ा शहर था और इसीलिए वह सी.पी.आई. के लिए उसके ट्रेड यूनियन का एक मैदान जैसा था। इसका जोड़ मेरठ से भी था। प्रसिद्ध 'मेरठ साजिश का मामला', जिसने ब्रिटिश राज के मेरठ परीक्षणों में बॉम्बे ट्रेड यूनियनों के स्कॉटलैंड और भारतीय नेताओं पर हमला किया, वह महत्वपूर्ण अंतनिर्हित कारकों में से एक था, यह कानपुर में सी.पी.आई. के पंजीकरण को प्रेरित करता है।
मेरठ साजिश का मामला-
मेरठ साजिश का मामला मार्च 1929 में भारत में शुरू हुआ एक विवादस्पद अदालत का मामला था और 1933 में इस मामले पर फ़ैसला सुनाया गया था। भारतीय रेलवे हड़ताल के आयोजन के लिए तीन अंग्रेज़ समेत कई व्यापारी संघों को गिरफ्तार किया गया था। ब्रिटिश सरकार ने झूठे मुक़दमे के तहत 33 वामपंथी व्यापार संघ के नेताओं को दोषी ठहराया था। इस मामले ने तुरंत इंग्लैंड में ध्यान आकर्षित किया था।मेरठ के साजिश के मामले ने इसी तरीके से भारत के कम्युनिस्ट पार्टी की सहायता की ताकि वह (सी.पी.आई.) कार्यकर्ताओ के समक्ष अपना पद हासिल कर सके।और सी.पी.आई. के बनने के बाद पिछले 97 सालों में भारत में कई कम्युनिस्ट पार्टी बनी, बहुत सी पार्टियाँ इलेक्शन में खड़ी नहीं होती हैं और कुछ पार्टी ने शस्त्र संघर्ष का रास्ता चुना है। अब सवाल यह उठता है कि क्या बहुत सी साम्यवादी पार्टी के बनने के कारण भारतीय साम्यवाद कमज़ोर हो गया है?
कम्युनिस्ट पार्टी के अहम हिस्से 1964 में हुए और सी.पी.आई. दो हिस्सों में बंट गया – पहला, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया; दूसरा, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सिस्ट)। दोनों ही पार्टी में मुख्य रूप से दो दल थे- लेफ्टिस्ट (Leftist) और राइटिस्ट (Rightist)। आगे चलकर बहुत से बदलाव आए और साल 1968 में ऑल इंडिया कोआर्डिनेशन कमीटी ऑफ़ कम्युनिस्ट रिवोल्यूश्नरीस (AICCCR) पार्टी बनी, और इस पार्टी में सी.पी.आई. (मार्क्सिस्ट) के ढेरों कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। आगे चलकर साल 1969 में सी.पी.आई. (मार्क्सिस्ट लेनिनिस्ट) पार्टी बनी। इस पार्टी का सिद्धांत कार्ल मार्क्स और व्लादिमीर लेनिन की क्रांतिकारी सोच के ऊपर आधारित था।
1. http://www.frontline.in/static/html/fl2909/stories/20120518290908900.htm
2. https://www.youthkiawaaz.com/2017/12/the-communist-parties-in-india-and-splits/