भारतीय परम्परा में यज्ञ एक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। यहाँ पर व्याप्त धारणा के अनुसार- इस समग्र सृष्टि के क्रियाकलाप 'यज्ञ' रूपी धुरी के चारों ओर ही चलते हैं। ऋषियों ने ''अयं यज्ञो विश्वस्य भुवनस्य नाभिः'' (अथर्ववेद 9. 15. 14) कहकर यज्ञ को भुवन की इस जगती की सृष्टि का आधार बिन्दु कहा है। गीता में कृष्ण ने कहा है-
अर्थात- प्रजापति ब्रह्मा ने कल्प के आदि में यज्ञ सहित प्रजाओं को रचकर उनसे कहा कि तुम लोग इस यज्ञ कर्म के द्वारा वृद्धि को प्राप्त होओ और यह यज्ञ तुम लोगों को इच्छित भोग प्रदान करने वाला हो। यज्ञ की महिमा अनन्त है। यज्ञ से आयु, आरोग्यता, तेजस्विता, विद्या, यश, पराक्रम, वंशवृद्धि, धन-धन्यादि, सभी प्रकार के राज-भोग, ऐश्वर्य, लौकिक एवं परलौकिक वस्तुओं की प्राप्ति होती है। प्राचीन काल से लेकर अब तक रुद्रयज्ञ, सूर्ययज्ञ, गणेशयज्ञ, लक्ष्मीयज्ञ, श्रीयज्ञ, लक्षचण्डी, भागवत यज्ञ, विष्णु यज्ञ, गृह शांति यज्ञ, पुत्रेष्ठी यज्ञ, शत्रुंजय, राजसूय, अश्वमेध, वर्षायज्ञ, सोमयज्ञ, गायत्री यज्ञ इत्यादि अनेक प्रकार के यज्ञ चले आ रहे हैं।
हिन्दू सनातन धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी संस्कार यज्ञ से ही प्रारम्भ होते हैं एवं यज्ञ में ही समाप्त हो जाते हैं। यज्ञ को पर्यावरण के शुद्धि से भी जोड़ कर देखा जाता है तथा यह भी माना जाता है कि यज्ञ से निकले धुएं से पर्यावरण रोग मुक्त होता है।
1. इन इंडियन कल्चर व्हाई डू वी... – स्वामिनी विमलानान्दा, राधिका कृष्णकुमार
2. http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/115603/8/08_chapter%202.pdf
3. यज्ञ कुंडमंडप सिद्धि, भोजराज द्विवेदी